क्या यही प्यार है
क्या यही प्यार है
इस चढ़ती जवानी की चाहत में,
हम दिल लगा बैठै।
दास्तां खुद से सुनकर ,
आसुओं से हम दिल लगा बैठै।
कुलेले करता यौवन,
ज्यों मृग थार में
हुस्न की दुनिया में ,
हुस्न की मृगतृष्णा से
भ्रमित होकर खुद को
मौत के गले लगा बैठै।
निकले थे अभी जवां होकर घर से ,
अपनों कि मोहब्बत भुलाकर।
किसी महबूबा का इंतजार है,
इस दिल को जैसे गई हैं वो बुलाकर।
ये भूल रहा है कि वो क्या, मोहब्बत होगी
इस ठगी के बाजार में जहां
दिल की कोई कदर ही नहीं है,
और गला रेत दिया जाता है सुलाकर।
हम फरेब को इश्क समझ बैठे,
और वो हमें समझ बैठे जाहिल।
उसे तो मिलते गए नए सागर,
बस हम उसे ही समझ बैठे साहिल।
हम झरने कि तरह उसमे ही गिरते गए
डूबकर हुस्न की अदाओं में
और वो उस शील की तरह जो
अक्सर हर झरने का है कातिल।