क्या तुझे भी ऐसा ही सूझता है
क्या तुझे भी ऐसा ही सूझता है


जानता हूँ तू मेरी और मैं सिर्फ तेरा हूँ
तू खजाना है प्यार का और मैं एक लुटेरा हूँ
पागल सा दिल है ना कुछ जानता ना बूझता है
देखूँ जब भी तुझे बस शरारत ही सूझता है
तेरी पतली कमर पर फिर रहा मेरा हाथ हो
तेरे और मेरे लब एक दूजे के साथ हो
हो मौसम जाड़े का और मैं तुझे पकड़े रखूं
तू कांपती रहे और मैं तुझे बाहों में जकड़े रखूं
जैसे दो दिलों के एक होने का आभास हो
हो इतने करीब की धड़कनों का भी एहसास हो
खुलीं खुलीं जुल्फें तेरी मेरे चेहरे पर बिखर जाए
तू साथ रहें जब भी तो मुस्कुराहटों से निखर जाए
रातें जो भी बीतें बस शरारतों में ही गुजर जाए
और मेरे छूने मात्र से ही तू मचल जाए
तड़पते हैं अब ज्यादा इंतजार नहीं होता है
कैसे गुजारें जब महीना सावन का होता है
ये आवारा सा दिल तुझसे भी यही पूछता है
क्या तुझे भी मेरे जैसा ही कुछ कुछ सूझता है।