क्या तंत्र वाकई भटक गया है? भाग
क्या तंत्र वाकई भटक गया है? भाग
इस संकट में कोई तो है जिसके आगे
इंसान आज इतना मजबूर है
बेबसी है फ़ैली चारों तरफ पर
कुर्सियों के गरूर में सत्ता मग़रूर है।
चारों और फैली है त्राहि त्राहि
कोई और बात नही है अब सूझती
महामारी औऱ लाचारी ऐसी है छाई
न कोई विकल्प है न कोई ठोस नीति
आज नंगा हुआ है तंत्र सारा
घर-घर बह रही अश्रों की धारा
देख लाशों की गठरियाँ शमशानों में
क्यों न पसीजता दिल नेताओं का
आखिर क्या नशा है उन कुर्सियों का
कैसे आंखों पर है पट्टी बंधी हुई
हर वादा हुआ हवा के ग़ुब्बारे जैसा
बह रही हर तरफ मौत की नदी
गूंझ उठे थे नारे हर तरफ हवा में
जब महामारी का विकल्प निकाला था
वैक्सीनशन बनाकर अपने घर में ही
वाकई में दुनिया में नाम कमाया था
पर यह कैसा फैसला तंत्र का रहा
कैसा बड्डपन जग को दिखलाया था
अपने घर में मौत की श्याएँ बिछाकर
विदेशों में अमृत को पहुंचवाया था
चल पड़े थे सीना ठोक के
दूसरे देशों का बीड़ा उठाने
अब अपने घर ज़रूरत आन पड़ी है
तो भीख का कटोरा है विश्व के सामने
दिल के आँसों हम किसको दिखाएं
सर जो ऊंचा था कंधों से लटक गया
कहाँ पहुंचना था, कहाँ पहुंच गए
क्या तंत्र राह से बिल्कुल भटक गया.............?????~
भाग 2,,,
इंसानियत चौराहे पर नंगी हुई है
अर्थ व्यवस्था हो चुकी है तितर बितर
अरे, सुपर पावर हम बनने जा रहे थे
किधर गया वह नज़रिया, लुफ्त हुई है पैनी नज़र
देश का न जाने कैसा भविष्य होगा
हज़ारो करोड़ों के बेमानी खर्चे से
आज जब मौत का तांडव चल रहा है
वातावरण गूंझ रहा है बेमानी चर्चाओं से
वर्तमान परिस्थितियों की क्या यही मांग है
या इंसानियत व इंसान को बचाना है
अरे ज़मीर से जागो, देश को चलाने वालो
कुर्सी तभी है, जब देश का प्राणी ज़िंदा है
वैसे तुम क्या बनाने जा रहे हो
लोगों की खून पसीने की कमाई से
क्या रोज़ी रोटी का विकल्प है उसमें
या जादू कोई जो दूर रखें महामारी से
यह पैसा है जनता के खून पसीने का
निचोड-निचोड़ कर जो ले जाते हो
कभी सेल्स टैक्स, तो कभी सी एस टी,जी एस टी
न जाने किनकी तिजौरी भरते हो
आज के वक्त की सदा सुनलो
बेरीज़गारी, लाचारी का दर्द महसूस करो
जो खो चुके हैं जिगर के लाडले
उनके फीके चेहरों को भी भांप लो
वक्त है आपदाओं के आंकलन करने का
मूलभूत सुविधा व सिस्टम ठीक करने का
निपटना है लाचारी, बीमारी, बेरीज़गारी से
मांग यही है, इस दौर को न दोहराने का
सुसज्जित अस्पताल, सुशिक्षित डॉक्टर
आज के समय की अहम एक मांग है
उद्योग,रोज़गार, गरीब की रोटी की है कमी
इसी लिए जनता के मन में दहशत व आग है
मेडिकल इमरजेंसी से नही है झूझना
अब अपने घर सब सुविधा उपलब्ध कराओ
22 हज़ार करोड़ में अस्पताल खोलो, इंफ्रास्ट्रक्चर लाओ
आपदाएं और आएंगी, इस बात को गांठ में बांध लो
अब भी हम सशक्त हो सकते हैं
गर तुम ज़िद्द व स्व-इच्छाओं को त्यागो
जो अत्यंत ज़रूरी है, उस पर ज़रा ध्यान देकर
देशवासियों की आस्था को न तोड़ो
तंत्र को राह अब बदलनी होगी
खूब हुई है हमारी जग हंसाई
जनता का देश है, देश है जनता से
जनहित में निवेश करो देश की पाई-पाई.....।