हूँ त्रसित बहुत अब पीड़ा से अब धीर नहीं बंधने पाता करुणा मधु रस बरसा जाओ कर बद्ध अनुग्रह हे दा... हूँ त्रसित बहुत अब पीड़ा से अब धीर नहीं बंधने पाता करुणा मधु रस बरसा जाओ क...
हम अपने विचारों को रखते हैं , अपनी कल्पनाओं के तार बुनते हैं !! हम अपने विचारों को रखते हैं , अपनी कल्पनाओं के तार बुनते हैं !!
तू बना औ मैं बना फिर बाद में मजहब बना, वक्त की आवाज है इंसान बनना चाहिए...! तू बना औ मैं बना फिर बाद में मजहब बना, वक्त की आवाज है इंसान बनना चाहिए...!
ग्रीष्म ऋतु की जलती हुई धूप में सोनाली अपना का रंग निखारती। ग्रीष्म ऋतु की जलती हुई धूप में सोनाली अपना का रंग निखारती।