क्या मिलता है?
क्या मिलता है?
दो टांगों के बीच नज़र है वहीं जहां से निकलते हो।
उभरी छाती को तकते हो जिसको पीकर पलते हो।
कितना कष्ट हुआ होगा उस मां को तुमको जनने में-
जिससे जीवन पाया जग में तुम उसको ही निगलते हो।
क्या मिलता है तुमको आख़िर बोलो ऐसा करने में।
नोच नोचकर बदन का हिस्सा अंगारों पर धरने में।
चंद घड़ी की हवस मिटाकर करते हो जीवन बर्बाद-
लाज नहीं क्या आती तुमको तन मन घायल करने में।
हाथ पकड़ कर, मुंह दबा कर बदन; बदन से रगड़ते हो।
कोमल अंगों को धागे सा खोलते और उधड़ते हो।
उसे जलाते हो फिर ज़िंदा सिसक-सिसक कर मरती है-
मर्द बने फिरते हो नाहक़ चलते हुए अकड़ते हो।
बेचारी भोली बुलबुल का करता है सैय्याद शिकार।
चीख़ नहीं सकती बेचारी कर नहीं पाती है प्रतिकार।
हाथ बांध कर, टांग पकड़ कर, मुंह में कपड़ा ठूंस दिया-
बेदर्दी से मसल - मसल कर करते हो तुम बलात्कार।
अपनी हवस मिटाते हो तुम मेरी टांगें फैला कर।
घुट जाती आवाज़ गले में रोकूं जब मैं चिल्ला कर।
सुनते नहीं हो बातें कोई और मनमानी करते हो -
बहुत गुमां करते हो ख़ुद पर मेरा आंचल मैला कर।
गरम मांस की खुशबू से क्यों जी तेरा ललचाता है।
तेरे भीतर पलने वाला पशु रूप जग जाता है।
झुंड बनाकर झपटते मुझ पर नोच बदन को खाते हो -
अपनी गलती और करनी पर तनिक नहीं पछताता है।