प्रकृति का उपहार
प्रकृति का उपहार
धरती की रक्षा करनी है पर्यावरण बचाना है।
आओ ये संकल्प करें हम घर घर वृक्ष लगाना है।।
सूखी धरती फटी दर्द से करती है चित्कार ये।
मेरी हरियाली लौटा दो कर दो तुम उपकार ये।।
हरे भरे जो वृक्ष रहेंगे जनजीवन मुस्काएगा।
धरती झूमेगी खुशियों से मस्त पवन लहराएगा।।
सुखी रहूंगी मैं सुख से जो तुम भी तो सुख पाओगे।
मेरे साथ नहीं तो तुम भी ऐ मानव दुःख पाओगे।।
वृक्ष अगर होंगे तब ही तो शुद्ध हवा जल पाओगे।
आज सुखी खुशहाल रहोगे तुम कल भी सुख पाओगे।।
वृक्ष न होंगे धरती पर तो श्वाँस कहाँ से लोगे तुम।
छाया ठंडी कहाँ पाओगे कैसे फल पाओगे तुम।।
हरे भरे ये वृक्ष हैं गहने वृक्ष है धरती का सिंगार।
मानव जीवन को प्रकृति का मिला है ये अनुपम उपहार।।