क्या मैं सही हूँ
क्या मैं सही हूँ
होंठों पर हँसी ले,
दूसरों के समक्ष मुस्काती हूँ।
दूसरों की कामों में ही, खुद को प्रसन्न पाती हूँ।
क्या मैं सही हूँ?
बच्चों के खातिर, हर किसी की कड़वी बात सह जाती हूँ।
आँखों का पानी भी, आँखों से न बहने देती हूँ।
क्या मैं सही हूँ?
मोह है ऐसा, बच्चों का।
जीवन सँवारने के खातिर इनका।
इनसे ही प्रेम न, कर पाती हूँ।
क्या मैं सही हूँ?
लगन, मेहनत से करूँ जब सारा।
न शाबाशी पाती हूँ।
गलती एक होने पर, अपमान का घूँट पी फिर वहीं पर रहती हूँ
क्या मैं सही हूँ?