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ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

4  

ca. Ratan Kumar Agarwala

Tragedy

क्या मैं ही हूँ संविधान?

क्या मैं ही हूँ संविधान?

2 mins
374


भीमराव अंबेडकर की रचना हूँ मैं,

कहने को राष्ट्र का सम्मान हूँ मैं ।

कहने को समानता का पोषक हूँ मैं,

कहने को आवाज की आजादी हूँ मैं,

कहने को भारत का संविधान हूँ मैं ।

 

पर अंदर से टूटा टूटा सा हूँ मैं,

कहीं कुछ बिखरा बिखरा सा हूँ मैं ।

विस्मृत सा हो रहा विधान हूँ मैं,

आरक्षण के लिबास में लिपटा हूँ मैं,

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

कितनी ही बार जलाया लोगो ने,

किया बार बार मेरा अपमान ।

मां भारती के इस विधान ने,

देखे जलते अपने ही अरमान ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

कई बार रोया हूँ मैं घुट घुट,

जब हो जाते निर्णय मेरे विरुद्ध ।

खतरे में नजर आती मेरी अस्मिता,

जब इंशाफ का मार्ग होता अवरुद्ध ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

बेबस से हो जाते मेरे प्रावधान,

जब बलात्कारियों का होता सम्मान ।

बेकसूर को हो जाती फांसी,

कानून करता दोषियों का आचमन ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

कानून के साथ होती आंखमिचौली,

गवाह भी बदल देते अपने बयान ।

अंधे कानून की दुहाई देकर,

करते मेरा अदालतों में अपमान ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

शब्दों की कर के लीपा पोती,

करते वकील जज को आश्वस्त ।

सजाते केस कुछ इस तरह कि,

गलत फैसले भी हो जाते दुरुस्त ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

इसी तरह अदालतों में सदा,

गला घुट दम निकलता मेरा ।

बेगुनाह को मिलती सजा,

और कत्लेआम हो जाता मेरा ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

हजारों संग्रामियों ने दी आहुति,

तब स्वतंत्र हुआ यह देश जहान ।

जो शहीद हुए, उनकी राख पर,

रचा गया मैं भारत का संविधान ।

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

डूब गया आस्थाओं का मंजर,

बिखर गया मेरा अंतर्मन ।

बिलख रहा हूँ, करता हूँ क्रुंदन,

मन में हो रही बड़ी ही घुटन,

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

 

व्यथित कर रहा मुझे यही सवाल,

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?

सोचूं क्योंकर आहत हुई मेरी दास्तान,

जाने कहां खो गई मेरी पहचान ?

काश मैं फिर पा जाता मेरा विधान ?

 

क्या मैं ही हूँ भारत का संविधान ?


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