क्या कसूर
क्या कसूर
माँ के साथ में ही क्यों अक्सर ऐसे होता है
सब कुछ बदलाव आते है।
जन्म से लेेकर मरन तक हर हिस्से में
त्यााग ही करना पड़ता है।
जब बेटी बनके आई, पराई कहलाई
जब पत्नी बनी ,सब का मान रखी
उसकी मरजी कोई ना जानी।
जब बहू बनी कामवाली जैसे ही
सब सहकर भी परीवार ही मानी
बस देेती आई बदले में
प्यार के बोल ही चाही।
एक जगह से दूसरी जगह जाए
मन को समझाए बस चलती जाए।
दोनों भी मेरा परिवार है माने
उसके हिस्से में बस समझौते ही आए।
