क्या हूँ मैं?
क्या हूँ मैं?
क्या हूं मैं, क्यों हूं मैं,
किस लिए आई मैं इस खुदगर्ज दुनिया मेंl
क्या मुझे भी खुदगर्जी का
एक छोटा सा मोहरा बनाया गया?
आखिर अस्तित्व क्या है मेरा,
दुनिया क्यों बनी,
दुनिया का अस्तित्व क्या है?
क्यों हमने ये झूठ का लिबास पहना हुआ है,
क्यों दिखावे का साया इंसान के हर तरफ हावी है?
आखिर मंजिल क्या है मेरी,
और इस मंजिल की आखिरी सीधी कौन सी है,
दुनिया की मंजिल क्या है?
क्या हम उस भगवान के बनाए
वो खिलौने हैं जिसमें शैतानों ने चाबी भरी है,
या हम उस रक्तबीज का एक बूंद बचा हुआ रक्त है,
जो कलयुग में पनप रहा है?
क्यों बनाया उसने हमें,
आखिर हमसे चाहता क्या है वो,
दुनिया से क्या चाहता है वो?
क्यों हर तरफ इन भगवान के व्यापारियों ने
झूठ, फरेब, गुनाहों की सड़क बनाई ,
क्या उस खुदा ने सिखाया ये सब हमें,
आखिर इन शब्दों को ही क्यों बनाया ?
दुनिया को कैसे बनाया है,
क्या हम इंसान अपनी इंसानियत भुला बैठे हैं,
क्यों हम उस पवित्र, पाख शक्ति का नाम
अपने अपवित्र मुंह से लेते हैं,
क्या यह सब हमारी गलती है ?
आखिर क्यों हम उसकी दी गई
अच्छाइयों का सबूत नहीं दे पा रहे हैं,
दुनिया के लेखक की दी सीख
हम क्यों नहीं सिख सीख पा रहे हैं?
खोट हम में है यह हमारी इंसानियत मेंl