क्या हुआ तेरा वादा
क्या हुआ तेरा वादा
ये बारिशों के दिन
आज तुम्हारे आने का वादा
पहाड़ी के नीचे वादी में,
धुन्ध से झाँक कर
निकलता हुआ रास्ता,
मैं बैठी हूँ अकेली
दूर दूर तक फैला है सन्नाटा,
न कोई आहट ना ही कोई साया
बस बीच बीच में एक दो लोरियों
की आवाज़ चौंका देती है
और उसमें बैठे लोग मुझे
अजीब नज़रों से एैसे घूरते हैं
जैसे मैं कोई भूत हूँ,
तुम्हें आना था पिछली शब, लेकिन
तुम्हारे आमद का वक़्त टलता रहा
देर तक ओस में भीगती रही
अनचाहे खयालातों से
मन रो उठा,
आँखें नम हो चलीं
ना तुम आये ना कोई खबर,
धुन्ध पर पाँव रख के चल दी हूँ
वापस बोझिल कदमों से
देखते हुए पीछे मुड़ मुड़कर
आँखों में आस लिये।
धीरे धीरे धुँधला पड़ रहा है
रास्ते का साया भी
दिल फ़रियाद कर रहा है
प्रोमिस डे पर ही
अपना वादा तोड़ गए
तुम क्यूँ नहीं आये।