क्या होता
क्या होता
तेरा हो भी जाता तो क्या होता,
थोड़ा दिल धड़काता, तो भी क्या होता,
वो बदलती रही रास्ते मंज़िल तक पहुंचने के,
गर मैं सही रास्ते पर होता भी तो क्या होता।
हालात बदल दिया उसने मुकद्दर में आकर,
मैं सिकंदर भी होता तो क्या होता,
वो टकराते रहे किनारों पर लहरों के ज़ोर से,
मौजों से ही होती है खता तो फिर क्या होता।
चांदनी रौशन है आसमां के अंधेरे से,
सरफरोशी मन में होती तो क्या होता।
ग़लतफहमी हमेशा हादसों का शिकार होती,
और हादसे से ही ना होते तो शिकार क्या होता।
उल्फ़त का इंतकाम भी किया उसने
इंतज़ाम करके,
बीच राहों में छोड़ा भी होता तो क्या होता।
क्यों खफ़ा है जिंदगी मुझसे ही मिलकर,
लगता है यार कोई मिल रहा है गले यूं ही
जलकर,
तोड़ देते हम रिश्ते भी यूं ही अपनों के,
यह बंधनों का दौर भी ना होता तो क्या होता।