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क्या हो गया हूँ मैं

क्या हो गया हूँ मैं

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क्या था और क्या हो कर रह गया हूँ मैं

तेरे हाथों का खिलौना बन के रह गया हूँ मैं

जो तो करता है करूँ तेरी शिकायत तुझसे

तेरी बातों में उलझ कर रह जाता हूँ मैं।


दिल तो करता है के ना मिलूँ तुमसे

खुद को दूर कर लूँ मैं अब खुद से

फिर ना जाने क्या हो जाता है मुझे

अपने वादों से ही मुकर जाता हूँ मैं।


लाख शिकवे होते हैं रोज कहने को

तुम तो कह देती हो आज रहने दो

दर्द के बादल छुपा कर रखे हैं मैंने

अकेले में बारिश सा बरसता हूँ मैं।


आप जब भी मिलने मुझसे आते हैं

सारे शिकवे फिजां में घुल जाते हैं

आपके जाते ही एक तूफान सा आता है

तिनके की तरह हवा में बिखर जाता हूँ मैं।


रोज बातें में कई सोच कर आता हूँ

देख कर तुझको सब कुछ भूल जाता हूँ

तेरी आँखों में जब भी देखता हूँ सनम

अपने शिकवों पर खुद ही शरमा जाता हूँ मैं।


कैसे कहूँ तुमसे मेरे दिल मैं क्या है

एक तरफ तू तो इक तरफ यह जहान है

कैसे समझाऊँ मैं तुम दोनों को तुम ही कहो

ऐसा करता हूँ खुद ही मिट जाता हूँ मैं।।


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