क्या हक़ है..!
क्या हक़ है..!
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और एक दिन...
उनको ही हम रंग दिखा देते हैं
जिनकी ऊँगली थाम चलना सीखते हैं
जिनके कंधों पर बैठ ये खूबसूरत और
रंग बिरंगी दुनिया को देखते समझते हैं
कभी जिनके छाती पर बैठ राजसिंहासन
सा सुख पाते और अपनी हर बात मनवाते हैं,
जो हर कदम पर अपनी हथेलियाँ बिछा देते,
हर जिद्द हमारी मानते हमारी ख़ुशी के लिए
अंततः...
हम उन्हें ही अपना असली रंग दिखा देते
जब हमारी बारी आती है उनको शहंशाह
की तरह रखने की तब हम
उनको छोड़ देते हैं फ़कीर बना कर
तो किस हक़ से किस मुँह से कहे कि
हे तात...!