क्या दिखता है तुमको?
क्या दिखता है तुमको?
कहते है किताबों से ज़्यादा
चेहरों पर लिखा होता है,
तो क्या जब तुम थामते हो मेरा हाथ
और नज़रें मिलाते ही मेरे साथ..
क्या दिखते है तुमको..
माथे पर शिकन के निशान?
जो बयां करते हैं केवल
तुम्हारे साथ रहने के अरमान।
क्या दिखते है तुमको...
मेरी आंखों के नीचे काले घेरे,
जो परछाईं है उन ख्वाबों की
जो मैंने देखे सिर्फ साथ तेरे।
क्या दिखती है तुमको...
मेरी मुस्कान के पीछे वो रेखाएं,
जो तुम्हारे आते ही छिपकर..
तुमसे दूर होने का डर बतलाएं।
क्या दिखते है तुमको...
मेरे कानों पर गिरे वो घुंघराले बाल
बुलाते है तुमको मानो...
तुम्हारी उंगलियों के स्पर्श से जैसे..
सीधी हो जाएगी उनकी चाल।
और क्या दिखती है तुमको?
उस आखिरी बोसे की छाप,
दिया गया था जो मेरी पलकों पर,
जिसको बसा लिया मैंने वहीं,
और बढ़ गया इन सांसों का ताप।
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जो दिखता हैं तुम्हें यह सब,
फिर मेरे पास लौटकर क्यों नहीं आते,
इतनी दूरी देकर मेरी रूह को सताते।
मेरे चेहरे की उदासियां तुम्हें बुलाती हैं,
पढ़कर ज़रा चखो इन्हें...
रह रहकर मेरी आंखों में यह आंसू दे जाती हैं।