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Isha Kathuria

Abstract

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Isha Kathuria

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धरा लॉकडाउन है

धरा लॉकडाउन है

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आज दिन हो चले है कई

लॉकडाउन की तारीख और बढ़ गई,

अप्रैल गुज़रा और आ गया मई।

पर युद्ध तो चले जा रहा है,

और विश्व कोरोना से लड़े जा रहा है।


स्कूल कॉलेज सब बंद पड़े हैं

बच्चे और शिक्षक स्क्रीन से जुड़े है।

त्योहारों व उत्सवों पर रोक लगी है

बीमारी यह मूंह फाड़े खड़ी है।


ना ही मंदिर, ना मस्जिद खुली है,

अस्पतालों में हालत बुरी है।

घर पर कैद हैं अब इंसान,

और धरती मां करती विश्राम।


इतने वर्षों से उन्हें सांस ना आया

पर मनुष्य कभी समझ ना पाया,

अब महामारी ने यह अहसास दिलाया

मास्क पहनने पर विवश कराया।


यह पृथ्वी खुश हैं खुली हवाओं में,

उन्मुक्त गगन से, स्नेहिल घटाओं से।

पंछी मधुर वाणी में चहचहा रहे

मोर झूम के नाच और गा रहे।


हां यही तो पृथ्वी चाहती है..

खिलखिलाती धरा सबके मन भाती है।

तो जब सब ठीक हो जाएगा,

और मनुष्य फिर स्वार्थ सिद्ध करने आयेगा


फिर यह भूलकर भी मत भूलना

कि इंसान अगर नहीं सुधरा।

चारों ओर से हाहाकार मचेगा,

जिसका ज़िम्मेदार तू स्वयं ही कहलाएगा।


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