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Isha Kathuria

Tragedy

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Isha Kathuria

Tragedy

मेरी आशा का "लाल" रंग

मेरी आशा का "लाल" रंग

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जब मैं होती हूं थोड़ी अस्त-व्यस्त,

या शायद माहवारी की पीड़ा में ग्रस्त,

जब चारों तरफ बिखरा होता है अंधेरा,

मेरी निराशा घात लगाए करती है हृदय पर बसेरा

जब एनीमिया के कारण मेरा चेहरा पड़ता है फीका,

और आइना दिखाए मेरा अक्स...

किसी कमजोर शख़्स के सरीखा,

हां तब मैं ओढ़ती हूं आशा का वो रंग,

उजला देती वो मेरा मुख और आत्मा भी संग।


सुनहरी डिब्बी से वो मुझे आवाज़ देकर बुलाती है,

वो "रेड शेड" की लिपस्टिक मुझे अपनी ओर खींच जाती है।

आशा का यह लाल रंग है खुशियों की सौगात,

और ये गहरा रंग समेटे है कुछ गहरे जज़्बात।

पर मैं कुंवारी होकर भी लाल लिपस्टिक हूं लगाती,

समाज को ताक पर रख,

उस चटक लाल रंग को अपने होंठो पर चढ़ाती।

फिर समाज के ठेकेदार मुझे थोड़ा समझाते

"सादगी में ही खूबसूरती" आंखे बड़ी कर बताते।

अरे! सुर्ख होंठो को तो वह लोग

गलत आमंत्रण का जरिया कह जाते।


लेकिन मुझे यह बात ज़रा भी हजम न हो पाई,

मेरी लाल लिपस्टिक से इतनी आफत क्यों है आई।

यूं तो बड़ा भाता तुमको लड़की का सजना संवरना,

गले में हो मंगलसूत्र, तुम्हारे नाम का सिंदूर भरना।

लेकिन जो कुवारेपन में मैं कर लूं चटक श्रृंगार,

कैसे झेल पाऊं भला, उथली नज़रों के वार।


खैर छोड़ो, इतना भी मैं ही सोचूं, तो कैसे जी पाऊंगी?

अपनी ख्वाहिशों का गला दबाकर, घूट कर रह जाऊंगी।

मेरे कौमार्य का तुमने मेकअप से अंदाज़ा लगाना है,

तो मैंने भी ओछी सोच को रेड शेड से ठेंगा दिखाना है।

इसलिए इस निर्लज्ज को खास फर्क नहीं पड़ेगा,

मेरे होंठो पर तो केवल अब लाल रंग ही चढ़ेगा।



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