मैं चाहती हूं
मैं चाहती हूं
मैं चाहती हूं प्रिय तुम को पा जाऊँ,
तुम्हारे ही दिल में आशियां बसाऊं।
मैं चाहती हूं तुम्हें रोज़ गाते देखना...
तरकारी मेरी, पर तुम्हारा रोटियां सेंकना।
मैं चाहती हूं चूमना हर सुबह तुम्हारी सूजी आंखे,
मुस्काओ फिर तुम नींद में...
और चेहरे पर तुम्हारे सूरज की लालिमा झांके।
मैं चाहती हूं महसूस करना तुम्हारी खिलखिलाहट,
वो ज़ोर ज़ोर से हँसना, वो प्यारी मुस्कुराहट।
मैं चाहती हूं सुनना तुम्हारी हर कहानी,
चाहे हो आज के दिन का हाल या दास्तां सदियों पुरानी।
मैं चाहती हूं तुम्हारे संग जगना और सोना,
बांटना है तुम संग घर का तुम्हारा पसंदीदा कोना।
मैं चाहती हूं संवारना तुम्हारे वो अस्त व्यस्त बाल,
हर मुसीबत से लड़ना बनकर तुम्हारी ढाल।
मैं चाहती हूं जीना तुम्हारी किताबों के हर किरदार,
और सुनना प्रेम कविताएं तुम्हारे मुख से बार-बार।
मैं चाहती हूं बनना तुम्हारी शाम की वो कड़क चाय,
जिसे लबों से लगाकर सारी थकान दूर भाग जाए।
मैं चाहती हूं तुम्हें तुम्हारी हर कमी के साथ,
जीवन भर तुम्हारे नाम हो मेरे हिना वाले हाथ।
क्यूंकि मैं चाहती हूं हर वो चीज़ जो लगे तुम्हें बेहद अजीज़।
मैं चाहती हूं बयां कर देना अपना प्यार,
पर जाने क्यूं पूछता है ये दिल सवाल हज़ार
कहता है सच्ची मोहब्बत मिलने के नहीं है आसार।