Ajita Singh
Fantasy
दिल तुम्हें देखकर
अक्सर ये सोचता है
तुम मेरा भ्रम हो या
कोई कल्पना
मेरी अलसायी हुई सुबह या
जागती रातों का सपना
तुम क्यों मेरी कविता का केन्द्र बिंदु हो
सार हो... शीर्षक हो...
तुम क्यों हो ?
कौन हो ?
वो शाम.....
कांटे
मौन भाषा
सुकून
जैसे
सफ़र
कविता
प्यार
मौन
तुम
कदम बढ़ा रहे थे दोनों मगर अब सिर्फ यादें थीं पलकें भिगोने को। कदम बढ़ा रहे थे दोनों मगर अब सिर्फ यादें थीं पलकें भिगोने को।
तुम कही भी रहो, हमेशा खुश रहो यही दुआ माँगा है। तुम कही भी रहो, हमेशा खुश रहो यही दुआ माँगा है।
पत्थर देख मन घबराया, भाग्य समझ वह मुरझाया, पत्थर देख मन घबराया, भाग्य समझ वह मुरझाया,
सच तो यह हैं कि तू द्रोपदी से भी बड़ी हैं तू द्रोपदी से भी बड़ी है। सच तो यह हैं कि तू द्रोपदी से भी बड़ी हैं तू द्रोपदी से भी बड़ी है।
शस्य श्यामला के नव श्रृंगार से प्रफुल्लित अतिथि ऋतु बसंत है । शस्य श्यामला के नव श्रृंगार से प्रफुल्लित अतिथि ऋतु बसंत है ।
जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।।
दुनिया से अंजान हूं सब कहते बहुत नादान हूं दुनिया से अंजान हूं सब कहते बहुत नादान हूं
तब तक ना जाने कितनो के घर चलते रहेगे ? और खुलते रहेगे तवायफखाने ! तब तक ना जाने कितनो के घर चलते रहेगे ? और खुलते रहेगे तवायफखाने !
तेरी ऊँगलीयाँ पकड़ कर जो हमने राह गुज़ारी है। तेरी ऊँगलीयाँ पकड़ कर जो हमने राह गुज़ारी है।
कल्पनाओं से देती हूँ उष्णता अनंत इच्छाएं बन बरसती हूँ कल्पनाओं से देती हूँ उष्णता अनंत इच्छाएं बन बरसती हूँ
रंगों और खुशबू की सुंदरता का संगम। भर देता जीवन में एक नई तरन्नुम।। रंगों और खुशबू की सुंदरता का संगम। भर देता जीवन में एक नई तरन्नुम।।
मेरा मन न जाने कितने काश और कशमकश में उलझ जाता है.. मेरा मन न जाने कितने काश और कशमकश में उलझ जाता है..
जीवन में हो कितना भी गम हर गम का इलाज कर देती। जीवन में हो कितना भी गम हर गम का इलाज कर देती।
दिल की चाहत का वर्ष इंतज़ार लाया बसंत बाहर जीवन के दिन चार होली हर्ष हज़ार रफ्ता रफ्ता दिल की चाहत का वर्ष इंतज़ार लाया बसंत बाहर जीवन के दिन चार होली हर्ष हज़ा...
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ। जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।
मेरे दिल को होगा पूरा यक़ीन तेरे आने का तभी, चल क़दम बढ़ा आगे और लग यूँ मेरे गले अभी। मेरे दिल को होगा पूरा यक़ीन तेरे आने का तभी, चल क़दम बढ़ा आगे और लग यूँ मेरे ...
ना खबर कोई ना दस्तक दिए मर्ज तो थी उनके दीदार की । ना खबर कोई ना दस्तक दिए मर्ज तो थी उनके दीदार की ।
गुफ्तगू करनी है तुमसे कभी थोड़ा पास बुलाकर। गुफ्तगू करनी है तुमसे कभी थोड़ा पास बुलाकर।
दुःख - दर्द बाँटना चाहूँ, मुख से कुछ कह न पाऊँ, दुःख - दर्द बाँटना चाहूँ, मुख से कुछ कह न पाऊँ,
शून्य में जाने लगती हैं मन की भावनाएं दम तोड़ने लगती हैं अपनी संवेदनाएं शून्य में जाने लगती हैं मन की भावनाएं दम तोड़ने लगती हैं अपनी संवेदनाएं