कविता
कविता
सुबह की नरम घास पर पड़ी
ओस की बूँद सी लगती हो।
सुकोमल हो बड़ी फूलों जैसी
रंगीन तितली सी लगती हो।
कभी आओ बाहर सपनों से
मुझे स्वप्न सुंदरी सी लगती हो।
हर पल गुनगुनाना चाहे दिल
तुम वही सरगम सी लगती हो।
नाचती है होठों पर हरदम जो
वो खुशी सी तुम लगती हो।
क्यों न चाहूँ दीवानों की तरह,
मुझे प्रेम दीवानी सी लगती हो।

