कविता को भी
कविता को भी
कविता को भी
जीवन की तरह
प्रतिपल आने वाली चुनौतियों
को स्वीकार करने की
आदत की तरह
बनने देना है।
हृदय से उत्सर्जित होने वाले शब्द
जीवन की तरह
न सिर्फ चुनौतियों के समक्ष
खड़े होते हैं
युद्ध लड़ते हैं
बल्कि विजय प्राप्त करते हैं
और सच कहिये तो
विजय रास्ते में छूट जाती है
उनकी जय जयकार होती है।
जैसे कि आजकल हो रही है
बेशक अभी ये जय
गुरूत्व तक सीमित है
वो भी बहुत धीमी आवाज में।