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Jyoti Sagar Sana

Abstract Inspirational

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Jyoti Sagar Sana

Abstract Inspirational

कविता एक तपस्या

कविता एक तपस्या

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आजकल मैं एक तपस्या कर रही हूँ,

या कहिये एक कविता लिख रही हूँ।

नौ रसों को सौ सौ बार चख रही हूँ,

कुछ नहीं हूँ जानती बस सीख रही हूँ।


श्रृंगार रस में कविता संग ही सज सँवर रही हूँ,

करुण रस में डूब, खो गया कुछ विचर रही हूँ।

वीर रस, भयानक रस और वीभत्स रस में,

मैं खुद के डर को ढूंढ कर खत्म कर रही हूँ।


अद्भुत रस के विस्मय में क्या कहूँ 

मैं सच में कुछ लिखने लगी हूँ,

शांत रस में डूब ये सोच रही हूँ,

अब ये आत्मचिंतन कर रही हूँ।


मैं ही नहीं हर नयी लेखनी ये सोचे,

अच्छा लिखा है कोई आ के कह दे,

अब ज़्यादा पढ़ने का वादा कर रही हूँ,

आजकल मैं एक तपस्या कर रही हूँ।



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