दिसंबर
दिसंबर
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माह दिसंबर बदन में जगने लगे हैं सिहूरन कुछ
बर्फीली हवाओं से लगने लगे हैं ठिठुरन कुछ
धीरे धीरे बदन पर चढने लगा है वसन का तह
जेसे जालिम आज़ादी से होने लगे हैं बिछुड़न कुछ
धीरे धीरे चढ़ी दुपहरी जैसे रात अमावस की
बादल का ओट लिए सूरज चांद लगे है पूरनम कुछ
गुलाबी होठों पे तेरे चमकीली ईक ओंस की बूँद
जैसे मेरे ख्वाबों वाली तू लगे हैं सिमरन कुछ
कंबल ओढ़ रजाई में जमी जवानी बूढ़ों सी
सन सन बर्फ़ीली सांसे लगे फ़राओ मिसरन कुछ ।।