कूकड़ी बने भुट्टा
कूकड़ी बने भुट्टा
खड़ी खेत में फसल भुट्टा लहराये
भुट्टों का प्यारा मौसम है फिर आया,
वर्षा की पड़ती रिमझिम फुहार जब
भुना भुट्टा कूकड़ी की याद दिलाये ।
भूनें भुट्टे अँगीठी पर कोयलों में
सिकते अंगारों पर खूब चटक कर
छिलके में रख हाथ में पकड़ें,
उसमें नींबू नमक मिलायें कस कर।
नरम दूधिया भुट्टा मन भाये
सबको यह बहुत हर्षाये
बाल वृद्ध सबके मन भाये
भुना भुट्टा कूकड़ी कहलाये।
हरी थी मन भरी थी
लाख मोती जड़ी थी,
राजा जी के खेत में
दुशाला ओढ़े खड़ी थी,
आया वारा जाट का
पटरा सी गिरी थी।
इससे बनती कई पहेली
बूझो जो जाने सब कोई ,
बूझो तो पहेली समझो
अच्छा मनोविनोद है यह।
उबालकर भूनकर पीसकर
जैसे पसन्द हो भुट्टा खाओ,
दाने पीसकर दही मिलाकर
नमकीन हलवा स्वादिष्ट खाओ।
सबका अलग अलग तरीक़ा
खाने का और बनाने का,
सबका प्यारा मनभावन भुट्टा
अंगारों पर सिक कूकड़ी बनता।
कूकड़ी की भीनी खुशबू
सबके मन को है भाती,
बच्चे पत्ते में लपेट इसे लेते
उछल कूदकर ख़ुश हो खाते।
