कुठाराघात
कुठाराघात
देवोपम संस्कृति यह विश्वभर में पूजी जाती है
"अतिथि देवो भवः"- यही हमारी थाती है।
"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः"
का जयघोष यह करती-करवाती है।
"वसुधैव कुटुम्बकम" का मंत्र सौंप वसुधा को,
विश्वगुरु बनने का गौरव यह पाती है।
शेष विश्व जब नग्न विचरता था वनों में,
तब की संस्कृति यह मानी जाती है।
तब क्यों यह आज नग्न विचरने में,
गौरव का भान कर पाती है।
कर नित्य नूतन अत्याचार रमणियों पर,
देवत्व से लुढ़कती जाती है।
अतिथि की कौन कहे, तिथि पर भी,
पाहुन से मिलने में घबराती है।
इतनी सुदृढ़ संस्कृति भी क्या यों ही,
मिट जाएगी, मिटने पाती है?
हे माँ के योग्य सपूतों- सुपुत्रियों,
आज भारत माता तुम्हें करुण स्वर में बुलाती है।
करो ग्रहण शुभ ज्ञान सम्पूर्ण विश्व से,
परन्तु निज संस्कृति भी कभी ठुकरायी जाती है?
निज संस्कृति का सम्मान करने वाली संतति ही
समस्त विश्व में आदर पाती है और उनकी ही
सभ्यता समस्त ब्रह्माण्ड में पूजी जाती है।
