कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र
फिर नई सुबह, फिर सूर्य नया,
है राग जुदा, एक आलाप नया,
नव प्रकाश, तिमिर को चीर रहा,
अब हो जीवन रस, संचार नया।।
सूरज ने राह तपा दी है अब,
मन को श्रम के तू अश्व लगा,
जिस भय से है, तेरा मतिभ्रम ,
उस भय को खुद से दूर भगा,
अब राह नयी, एक चाह नयी,
तू रह सचेत, पर उत्साह वही,
पथिक को पथ से आगे बढ़,
हर पथ का स्वामी बन जाना है,
जी लिए बहुत चंद्रमा की भांति ,
अब सूरज में तुम्हें ढल जाना है।।
किसी के प्रकाश पर ना निर्भर,
ना हर दिन आकार बदलना हो,
तुम हो निमित्त जग के प्रकाश के,
जीवन भर अब चाहे जलना हो।।
ये मानव जीवन अनमोल मिला,
न अकर्मण्य बनो, व्यवधान करो,
कुरुक्षेत्र सजा, है माधव कहते ,
हे पार्थ ,गांडीव सर संधान करो,
तुम बढ़े चलो, होकर स्वधर्म रत,
हर जीवन में,अपने से रंग भरो,
शिव का तुम को वरदान हमेशा,
शुभ कर्मन से , कबहुं न टरो।।
शिव का तुम को वरदान हमेशा,
शुभ कर्मन से कबहुं न टरो।।
