कुदरत का कहर
कुदरत का कहर


कुदरत का कहर देखो,
कुछ अपनों से बिछड़ गये।
बचे हुए थे उनके सपने चूर हो गये।
बूँद के लिए तरसते थे,
वो बाढ़ में बह गये।
कहीं मूक जानवर,
कई इन्सान बह गये।
मंदिर,मस्जिद, गुरुद्वारा
और अस्पताल बह गये।
ग़रीब की झोपड़ी और
अमीरों के आशियाने तबाह हुए।
फरिश्ते बनकर आसमान ,
वो दिल में उतर गये।
कुदरत को इन्सानियत
की मिसाल देकर गये।
सुधर जा इन्सान तू,
कुदरत को न आजमा तू।
उसके आँगन पर अपना
रोब जमा न तू।