कुछ लोग कहते हैं
कुछ लोग कहते हैं
न कर पाओगे, फिर गिर जाओगे
शर्म नहीं आती, कैसे रह (सह) पाओगे
ढंग से चल तो सकते नहीं
दौड़ कर दिखाओगे।
दिन - रात यही सब सहते हैं
कुछ लोग कहते हैं
बेवकूफ़ मत बनो केरियर का सवाल है
फला - फला बैंक से दस लाख का उधार है
मार्क्स तो देखो, शर्म से मर जाओगे
दस लाख का उधार है, कैसे चुका पाओगे।
बोझ तले यूँ हीं दबे - दबे से रहते हैं
कुछ लोग कहते हैं
बर्बाद हो गया, दोस्ती में ये नासाज़ हो गया
शर्मा जी को देखा है, नेवी में उनका बेटा है
घर-गाड़ी और समय का लेखा - जोखा है
दिन भर काम और रात को चैन से सोता है।
इन्हीं शब्दों में हम अक़्सर दिखते हैं
कुछ लोग कहते हैं
तुमने ही इसे सर पर चढ़ाया है
दो रोटी कमाना छोड़ एरोप्लेन पर बिठाया है
कब तक हम इसे यूँही इसे मुफ़्त का खिलाएँगे
लोग ताने मार - मारकर हमें सुनाएँगे।
सपनों में भी,
अब तो लोगों की ही सुनते हैं
कुछ लोग कहते हैं
भटक जायेगा तू एक दिन ग़ुमनामी में
इन्हीं ऊँची मीनारों की सुनामी में
कब तक लोगों की बातों का बोझ उठायेगा
बात मान थक जायेगा।
कभी - कभी सुकून की सांस भी भरते हैं
कुछ लोग कहते हैं
एक दिन ऐसा आयेगा
ज़माना बहुत आगे निकल जायेगा
तू रोयेगा.. पछतायेगा..
वक़्त की बेड़ियों में जकड़ा रह जायेगा।
बेवज़ह वक़्त की भी मार सहते हैं
कुछ लोग कहते हैं
पर तू डर मत, सब का टाइम आता है
देर - सवेर सबको समझ में आता है
जब तक तुझे यह समझ में आयेगा
ये ज़माना तुझे नोंचकर खा जायेगा।
हर पल टुकड़ों - टुकड़ों में बंटते हैं
कुछ लोग कहते हैं
हमसे से भी पूछो हम क्या कहते हैं
कोने में खड़े - खड़े हर बात को सहते हैं
जो न कभी दिखते थे, अब वो भी हँसते हैं
अपनी बात छोड़ मेरी पर आ टिकते हैं
दिल की बातों को कहने से डरते हैं
कुछ लोग कहते हैं।
