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swati Balurkar " sakhi "

Tragedy

2  

swati Balurkar " sakhi "

Tragedy

कुछ कुछ यूँ होता रहा -

कुछ कुछ यूँ होता रहा -

2 mins
469


(१)

रुखसत हुई थी डोली मेरी

बाबुल की दुवाओं के बिना ,

उस दिन जन्नत में रुह बापकी

बेटी की याद मे तिलमिलाती रही. . !

* * * * *



(२)

बेरहम जमाने की मारी मासूम को

भीड ने जब दफनाया था,

मौत ऐसी देख आसमान का दिल रोया,

बच्ची का दर्द याद कर के

ज़मीन भी देर तक सिसकती रही. . !

* * * * *



(३)

हँसते-खिलखिलाते घर में मौत की दस्तक ,

जवान बेटे का घर ही उज़ड गया,

बेटे के जनाज़े को जब कंधा दिया उसने,

दबाई आहों से

बाप का दिल ज़ार -ज़ार होता रहा. . !

* * * * *



(४)

खिलौने की दुकान ही वो खरीद लाया था

बच्चे की खुशियाँ याद करके,

घर से बच्चे को जो अगवाह हुआ पाया

पल पल दिल दुखी बाप का तड़पता रहा. .!

* * * * *



(५)

बाप की मौत पर बहन सी दहाड़ मारकर

रो ना पाया था वह,

अर्थी की तैयारी में जुटा सिसक रहा था,

पास नही था आखरी समय में बेटा होकर ,

आज खुद को अनाथ महसूस कर

अंदर ही अंदर वह छटपटाता रहा . . !

* * * * *



(६)

लड़खड़ाते कदमों से मकान की ओेर आया था वह,

मदहोश निगाहों से टूटे घर को देख रहा था,

इमारत तो अच्छी - खासी थी,

भोली बीवी और मासूम बच्ची जा चुके थे

शराबी के घर से पीछा छुड़ाकर,

बच्ची की किलकारियाँ और बीबी के आँसू

महसूस करके अब. . ?

मिलने को दिल उसका मचलता रहा. .

आज अपने किये पर वो पछताता रहा. . !


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