कुछ कुछ यूँ होता रहा -
कुछ कुछ यूँ होता रहा -
(१)
रुखसत हुई थी डोली मेरी
बाबुल की दुवाओं के बिना ,
उस दिन जन्नत में रुह बापकी
बेटी की याद मे तिलमिलाती रही. . !
* * * * *
(२)
बेरहम जमाने की मारी मासूम को
भीड ने जब दफनाया था,
मौत ऐसी देख आसमान का दिल रोया,
बच्ची का दर्द याद कर के
ज़मीन भी देर तक सिसकती रही. . !
* * * * *
(३)
हँसते-खिलखिलाते घर में मौत की दस्तक ,
जवान बेटे का घर ही उज़ड गया,
बेटे के जनाज़े को जब कंधा दिया उसने,
दबाई आहों से
बाप का दिल ज़ार -ज़ार होता रहा. . !
* * * * *
(४)
खिलौने की दुकान ही वो खरीद लाया था
बच्चे की खुशियाँ याद करके,
घर से बच्चे को जो अगवाह हुआ पाया
पल पल दिल दुखी बाप का तड़पता रहा. .!
* * * * *
(५)
बाप की मौत पर बहन सी दहाड़ मारकर
रो ना पाया था वह,
अर्थी की तैयारी में जुटा सिसक रहा था,
पास नही था आखरी समय में बेटा होकर ,
आज खुद को अनाथ महसूस कर
अंदर ही अंदर वह छटपटाता रहा . . !
* * * * *
(६)
लड़खड़ाते कदमों से मकान की ओेर आया था वह,
मदहोश निगाहों से टूटे घर को देख रहा था,
इमारत तो अच्छी - खासी थी,
भोली बीवी और मासूम बच्ची जा चुके थे
शराबी के घर से पीछा छुड़ाकर,
बच्ची की किलकारियाँ और बीबी के आँसू
महसूस करके अब. . ?
मिलने को दिल उसका मचलता रहा. .
आज अपने किये पर वो पछताता रहा. . !