कुछ खामोशी
कुछ खामोशी
कुछ खामोशी बहुत कुछ कह देती है
खुशियों के घर में कुछ ग़म धर देती है
आंखों में कई ख़्वाब जल जाते हैं
खुशियों के घर में जब ग़म पसर जाते हैं
मैंने जिसे कल हंसते गाते खुश देखा था
आज उसी के घर में उसकी मिट्टी देखा था
क्या था वह उसके घर को तब मालूम हुआ
जब मरघट में उसका तन भस्म हुआ
वह किसी आकाशगंगा के सूरज सा था
जिसके गुजर जाने से घर का बंधन टूटा!