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Sukanta Nayak

Drama

3  

Sukanta Nayak

Drama

कुछ हसीन पल

कुछ हसीन पल

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कुछ वो दिन थे कुछ ये दिन है

मैं और आप साथ थे 

तो हाथो मे हाथ साथ थे

बेचेन मन कि चैन थे 

कभी पलकों की नमी आप थे।


दिन और रात थी 

एक कशिश और होती थी मदभरी बात

बीतगया ये जमाना जैसे सदियों से पुराना

तनहाइओने जकड़ लिया 

कहीं दूर छूट गया एक छोटी सी मुलाकात।


कदम तो साथ बढ़ाये थे 

फिर क्यों साथ ना चल पाए

अंधेरों में उजाले ढूंढ लिए थे 

फिर भी क्यों मंज़िल ढूंढ न पाए।



ये थी मेरी गलती या आपकी

सलाखें बेड़ी बनगई 

हर वो मुमकिन नामुमकिन हो गयी

क्या ये दुआ थी आपकी।


अतीत को डोर कर 

खुद को झिंझोड़ कर अब क्या फायदा

नासमझ में ही समझ है 

और समझ के नासमझ

अब बंधन जुड़े या टूटे

खुद को सजा देके क्या फायदा।


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