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अनजान रसिक

Action Inspirational

4.5  

अनजान रसिक

Action Inspirational

कुछ अनकहे गिले – शिकवे

कुछ अनकहे गिले – शिकवे

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गिला तुमसे ये नहीं कि एक सुंदर संसार का सपना सजाया तुमने,

आखिर तुम भी इंसान हों और सपने सजाने का हक़ है तुम्हें 

शिकवा तो इस बात का है कि उस सपने का कुछ बीड़ा खुद उठा के संसार को

स्वयं सुन्दर क्यों ना बनाया तुमने?

गिला तुमसे ये नहीं कि अपनी बेटी के लिए एक सुशील जीवनसाथी चाहा तुमने,

शिकवा तो इस बात का है कि खुद अपनी अर्धांगिनी का

अर्ध अंग बनने में ना जाने क्यों चूक कर दी तुमने?

गिला तुमसे ये नहीं की अपने पुत्र से पुत्र- धर्म निभाने की अपेक्षा रखते हो,

आखिर जन्म दिया है उसे तुमने,

शिकवा तो इस बात का है कि वृद्धाश्रम में

अपने बूढ़े माँ बाप को ठोकर खाने को क्यों छोड़ दिया तुमने?

गिला इस बात का कदापि नहीं कि दुनिया को आदर्शों और

सिद्धांतों के अनुसरण का पाठ पढ़ाया तुमने,

शिकवा तो इस बात का है कि स्वयं छल-कपट हज़ार करना फिर भी ना छोड़ा आज तक तुमने। 

गिला इस बात का है ही नहीं कि हर बात का हाजिर जवाब दिया है तुमने और

अपनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय दिया तुमने,

शिकवा तो इस बात का है कि खुद के साथ अत

्याचार को समाज से डर के

आज तक खामोशी से सहा तुमने। 

गिला तुमसे ये नहीं कि चौराहे पर भीख मांगते बच्चों को देख

उनके लिए आवाज़ उठाई हर पल तुमने, अच्छी बात है कि

जिम्मेदार नागरिक का फर्ज़ सदा समझा और निभाया तुमने,

शिकवा तो इस बात का है कि उस बालक पर दया दृष्टि दिखला कर

उसके हाथ में एक नोट थमा देने तक ही अपना फर्ज समझा तुमने। 

राष्ट्र हमारा है तो उसके उत्थान की ज़िम्मेदारी भी तो हमारी है ,

परिवार हमारा है तो उसके प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा का उत्तरदायित्व भी तो हमारा ही है। 

गिला तुमसे ये है ही नहीं कि हर पल राष्ट्र का हित सर्वोपरि रखा अपने जहन में तुमने,

शिकवा तो बस इस बात का है कि बस बात करते ही रह गए तुम,

कदम कोई इस राह में क्यों नहीं उठाया आज तक तुमने ? 

गिला तुमसे ये नहीं कि खुद को जिम्मेदार नागरिक कहते हो,

अच्छी बात है कि अपने कर्तव्यों का एहसास है तुम्हें,

शिकवा तो बस इस बात का है कि एहसास-मात्र ही होता है तुम्हें,

कुछ ज़िम्मा वास्तव में क्यों नहीं उठाया तुमने ? 



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