कुछ अधूरा सा लगता है
कुछ अधूरा सा लगता है
जब से रूठे हो तुम,
ये घर मकान सा लगता है।
तुम्हारी यादों से भरा,
ये कोना खाली सा लगता है।
तुम्हारी प्यारी मुस्कुराहटें,
जो बिखेरती थी रोशनियां।
वो शमादान आज ऐसा,
खामोश सा लगता है।
तेरे आँचल से छू कर,
जो आती थी ठंडी हवा।
उस हवा के झोंके का,
कुछ असर कम लगता है।
छुप के निहारा करते थे,
जिन दरों की दरार से तुझे।
वो दरवाज़ा आज मुझे,
कुछ ग़मगीन से लगता है।
तुम्हारे हाथ से बनी चाय,
के इस कदर कायल थे हम।
आज वो प्याला कुछ,
खाली खाली सा लगता है।
अब मान भी जाओ,
आ जाओ न तुम।
मेरा जीवन तुम बिन,
कुछ अधूरा सा लगता है।
