कस्तूरी
कस्तूरी
छूकर तेरे अंतरमन को, तृष्णा आज मिटाऊँ मैं
आकर तेरी बांहों में, सदियों की प्यास बुझाऊं मैं।
रख कर होंठों पर होंठों को, रस तुझमें अपना भर जाऊं मैं
होता है फूलों का रिश्ता भँवरों से, रिश्ता वो आज बनाऊं मैं।
बिखरूँ तेरी बांहों में, जुल्फों से तुझको उलझाऊं मैं
तन से क्या मन से भी तेरी, आ मुझसे तुझे मिलाऊँ मैं।
तुझसे ही श्रृंगार मेरा, ओढूं तुझको सज जाऊं मैं
फीकी फीकी सी थी रंगत मेरी, सिंदूरी हो जाऊं मैं।
जिस शाश्वत प्रेम की अनुभूति भर से ,
सदियों महकती आई हूं
छू कर तेरी उस खुशबू को
कस्तूरी हो जाऊँ मैं।।

