कस्तूरी मृग
कस्तूरी मृग
दोनो मिले...
बात हुई...
बात बनी....
प्रेम हुआ....
वह कॉलेज का प्रेम था...
खालिस प्रेम....
बिना मिलावट वाला....
चाँद के पार जाने की चाह वाला प्रेम...
कॉलेज के बेपरवाह दिनों में वह प्रेम नदी की भाँति था...
राह के पत्थरों से बेपरवाह कल कल बहती नदी वाला...
कॉलेज ख़त्म होने के बाद घर परिवार का बदलता व्यवहार....
प्रेमिल लड़की के लिए यह सब नया था...
बंदिशें...
जंजीरें...
बेड़िया...
पिंजरा...
इनका ज़िक्र तो बस कविता और कहानी की किताबों में ही पढ़ा था...
घर वालों की मर्जी के आगे सब कुछ बदल गया...
घरवालों ने शादी तय कर दी....
अरेंज्ड मैरिज....
धूमधाम से उसकी शादी हो गयी...
जिंदगी के तय फॉर्मूले से वह अपने घर मे रमने लगी....
अरेंज्ड मैरिज वाले अरेंजमेंट की तरह...
प्रेम राधा कृष्ण का भी था....
रुक्मिणी कृष्ण का भी प्रेम था....
प्रेम में ऊँचाई भी होती है...
प्रेम में गहरायी भी होती है...
समंदर की मानिंद...
वह अब जान चुकी थी प्रेम को...
प्रेम वक़्त के साथ ठहरता भी है....
प्रेम भी प्रेम की तरह ही होता है....
अथांग गहराई वाला....
प्रेम कुलाँचे भी भरता रहता है....
प्रेम मन में भीतर भी रह लेता है...
उस कस्तूरी की तरह...
जैसे अनजान रहता है उस कस्तूरी मृग की तरह....
अथाह प्रेम....