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Usha Gupta

Romance Tragedy

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Usha Gupta

Romance Tragedy

क्षितिज के उस पार

क्षितिज के उस पार

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बस तुम और मैं, मैं और तुम,

चल सखा चल क्षितिज के उस पार,

हो रहा क्षितिज लाल कर रहा सूचित,

हो सवार रथ पर अरूण चल दिया घर,

है तैयारी पूरी आगमन के तिमिर की,

ओढ़ लेंगे चादर अंधकार की हम-तुम,

 न पायेगा ढूँढ ये क्रूर समाज हमें,

 बसायेगें संसार प्यार का क्षितिज के उस पार,

 बस तुम और मैं, मैं और तुम।


न  डर जाति का न चिन्ता धर्म  की,

स्थापित करेगें धर्म हम नवीन,

देगें जिसको नाम हम-तुम प्रेम,

होगा न कोई बन्धन जाति का, 

दे देगें मुखाग्नि नफ़रत को,

बहेगी धारा प्यार की चहूं ओर,

छुप जायेंगें इस धार में हम-तुम,

न ढूंढ पायेगा ठेकेदार धर्म का कोई,

बसायेंगे संसार प्यार का क्षितिज के उस पार,

बस तुम और मैं, मैं और तुम।


हो मानव का धर्म या जाति कोई भी,

रक्त तो बह रहा एक ही शरीर में सबके,

क्यों हैं फिर जातियाँ अलग-अलग,

हैं क्यों धर्म फ़िर अलग-अलग, 

फैलाते हैं ये क्यों आग्नि नफ़रत की,

क्यों जी नहीं सकते साथ-साथ,

 भिन्न-भिन्न धर्मों के प्रेमी युगल?????

है क्यों गुनाह प्रेम नज़रों में,

 धर्म के रखवालों  के??????


बस तुम और मैं, मैं और तुम,

चल सखा चल तोड़ बन्धन सारे,

क्षितिज के उस पार।।



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