कोरोना : मानवीय संघर्ष
कोरोना : मानवीय संघर्ष
खौफ के साए में जिंदगी बेअसर हो गई,
क्योंं धरा के बलशाली तेरी आत्मशक्ति बेजान सी हो गई।
दो जून की रोटी परिवार की सलामती की फिक्र खा चली,
क्योंं खुशरंंग जिंदगी तुम्हारी बोझिल सी हो गई।
अनिश्चितताओं की फिज़ाओं में तेरा द्वंद क्षीण हो गया,
क्योंं खूबसूरती जहान की अकेलेपन में सिमट गई।
ठहाके तेरे गंभीर भाव वाचलता शांति मेंं बदल गई,
क्योंं सुक्ष्म विषाणु के सामने आत्मरक्षा कमजोर हो गई।
संयम को अपना, दुश्मन को बाहर का रास्ता दिखाना होगा,
आत्मविश्वास को ढाल बना, जल्द देखेगा तस्वीर बदल गई।