सफ़र......जारी है।
सफ़र......जारी है।
अक्सर तन्हाइयों में खुद को खोजने निकल जाता हूं,
खोया-पाया की उलझन में भटका पथिक बन जाता हूं।
अनचाहे क्षणों की टीस में, पश्चाताप में तपने लग जाता हूं,
छोटी-छोटी उपलब्धियों को याद कर मुस्कुराने लग जाता हूं।
अच्छे बुरे कर्मों को मन की कसौटी पर परखने लग जाता हूं,
लहराती रिमझिम बूंदों से मन शांत करने लग जाता हूं।
थक कर पेड़ की छांव में सुस्ताने लग जाता हूं,
ठहराव से निकल गतिज जीवन यात्रा में निकल जाता हूं।