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Nilofar Farooqui Tauseef

Abstract Inspirational

4  

Nilofar Farooqui Tauseef

Abstract Inspirational

कोरा काग़ज़

कोरा काग़ज़

1 min
248


हवा का झोंका, जब भी गुज़रता है।

मेरी ज़िंदगी की डायरी के पन्नों से, उलझता है।


हर अल्फ़ाज़, मुझे दिलकश अज़ीज़ है।

कहीं कोई रफ़ीक तो कोई रक़ीब है।


अपने भी हैं, पराये भी हैं,

खुशी हैं तो ग़म के साये भी हैं।


फिर वही पन्ना....

हाँ...... फिर वही पन्ना...


आज भी कोरा है,

बिन जिसके सब अधूरा है।


सब हैं साथ, पर कमी लगती है।

इस कोरे काग़ज़ पे भी, नमी लगती है।


बिन स्याही के भी, लकीरें बिखर गई है।

रोम-रोम मानो जैसे, सिहर गयी हैं।


आशियाँ टूट गया है।

अपना कोई छूट गया है।


कोरा पन्ना है, ये कोरा ही रहेगा।

मेरे साथ ये भी हर सितम सहेगा।


इससे ही तो हौसलों की उड़ान है।

हाँ पापा, एक आप से ही तो मेरी पहचान है।


ये डायरी ज़िन्दगी की, एक दिन ख़ामोश हो जाएगी।

मेरी अधूरी सी कहानी, फिर अधूरी रह जायेगी।

मेरी अधूरी सी कहानी, फिर अधूरी रह जायेगी।


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