कोमल कर स्पर्श तुम्हारा
कोमल कर स्पर्श तुम्हारा
हे प्रभो ! मैं दुःखों से दबी हूँ
अभावों से आकुल हूँ,
अपमानों से पीड़ित हूँ
भयों व्याधियों से त्रस्त हूँ।
सारे दुःखों का पहाड़
मानो मुझ पर टूटा है,
पर क्या यह सत्य नहीं
यह तुम्हारी ही भेजी हुई सौगात है !
तुम्हारा ही प्रेम से दिया उपहार है !
इस सत्य को जानने पर
फिर मुझे इनकी प्राप्ति में
क्यों असन्तोष होता है ?
तुम्हारी दी हुई प्रत्येक वस्तु में
तुम्हारे हृदय का निर्मल प्रेम देखकर
तुम्हारे प्रत्येक विधान में
तुम्हारा कोमल कर स्पर्श पाकर
मैं परम सुखी हो सकूँ
ऐसा विलक्षण हृदय,
अपनी असीम कृपा से
मुझे प्रदान करो हे नाथ !
