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ca. Ratan Kumar Agarwala

Classics Inspirational

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ca. Ratan Kumar Agarwala

Classics Inspirational

कोकिला

कोकिला

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मैंने हाल ही में माखनलाल जी चतुर्वेदी द्वारा रचित “कैदी और कोकिला” कविता पढ़ी। कविता के भाव मन को विह्वल कर गए और प्रेरणा मिली कि उसी विषय पर एक अलग तर्ज पर मैं भी कुछ लिखने की कोशिश करूं। मैंने भावों को शब्दो में समेटना शुरू किया और अपने आप ही बन गई यह कविता “कोकिला”। इस कविता को मैं माखनलाल जी चतुर्वेदी को अर्पित करता हूं। अगर मुझसे कोई धृष्टता हुई हो तो पाठक से क्षमाप्रार्थी हूं ………

 

बदली बदली सी है आज,

जाने क्यूं कोकिला की आवाज ?

प्रकृति की जर्जर होती हालत,

खत्म हो रही हरी भरी वादियां,

नदियों का दूषित होता जल,

रुला रहे सब कोकिला को आज।

 

बुझी बुझी सी है आज,

जाने क्यूं कोकिला की तान ?

मानव का अवनत होता मन,

एक दूसरे से हो रहा वैमनस्य,

शक्ति के लिए हो रहा उन्माद,

करा रहे कोकिला के दर्द का भान।

 

रुंधा रुंधा सा है आज,

जाने क्यों कोकिला का स्वर ?

भावनाओं में फैला कसैलापन,

धर्म के नाम पर फैलता जहर,

राजनीति के नाम हो रहे खेल,

जता रहे कोकिला के मन का डर।

 

क्रोधित सी लग रही है आज,

जाने क्यूं कोकिला की मात ?

देश के अंदर पनप रहे गद्दार,

बिखर रहे सब संयुक्त परिवार,

भाई का भाई से मिटता प्यार,

दे रहे सब कोकिला को आघात।

 

क्रुंदन कर रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का मन ?

अधिकारों का हो रहा अतिक्रमण,

गरीबों का हो रहा दमन,

पैसों का बढ़ता प्रलोभन,

कर रहे कोकिला के मन में कम्पन।

 

कैदखाने सा लग रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का मन आंगन ?

कोरोना का बढ़ता प्रकोप,

घरों में बंद बेबस से सब लोग,

भूख से बेहाल बिलखते बच्चे,

उजाड़ रहे सब कोकिला का चमन।

 

बेरंग सी हो रही है आज,

जाने क्यूं कोकिला की स्वर तरंग ?

शासन के विरुद्ध होते षडयंत्र,

किसानों के हो रहे आंदोलन,

मीडिया में हो रहे झूठे प्रसारण,

कर रहे कोकिला का मोह भंग।

 

अशांत सा हो रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का चित्त ?

मध्यमवर्ग की टूटती हालत,

आर्थिक प्रगति की गिरती दर,

सीमाओं पर होते अतिक्रमण,

करते कोकिला का मन विचलित।

 

क्रुद्ध सा हो रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का अंतर्मन ?

जजों की हो रही खरीद फरोख्त,

अदालतों में रुके हुए फैसले,

गवाहों के रोज बदलते बयान,

अवरुद्ध करते कोकिला का मन ।

 

क्षुब्ध सा हो रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का आचरण ?

हर ओर फैला हुआ भ्रष्टाचार,

लड़कियों पर बढ़ते बलात्कार,

युवापीढ़ी में फैलता कदाचार,

कर रहे कोकिला को अशांत मन।

 

विमुग्ध सा हो रहा है आज,

जाने क्यूं कोकिला का ध्यान ?

छोटी छोटी बातों पर हो रहे तलाक,

समाज में बढ़ती हुई विसंगतियां,

पनप रही धार्मिक कुरीतियां,

कर रहे कोकिला का दुख बयान।

 

कहती कोकिला आज जग से,

लौटा दो खुशियों का विहान।

मिटा दो मन से सारे वैमनश्य,

लौटा दो फिर हरी भरी वसुंधरा,

छुड़ा दो कैद से मेरा मन चमन,

गूंजेगी तभी धुन, बजेंगे सरगम।


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