कोए का कीड़ा
कोए का कीड़ा
मृत्यु अटल है
मृत्यु का उपहास क्यों !
जन्मते ही बंध चुकी डोर मृत्यु से,
आती जाती सांस
मांगती रही कुछ डोर, मृत्यु से,
जीने की लालसा
कुछ पल और, कहती रही मृत्यु से;
भीख मांगते ही जीए
फिर मृत्यु पर
विजय का अट्टहास क्यों !
निशि वासर बीते
संचित करते सोना, चांदी, माणिक, मोती;
करते आए
जीवन भर सिक्कों की खेती,
कोए के कीड़े को
रेशम के धागों में लिपटे ही मर जाना है;
जान कर भी
मृत्यु से परिहास क्यों !
