STORYMIRROR

Dr. Anu Somayajula

Abstract

3  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

कोए का कीड़ा

कोए का कीड़ा

1 min
286

मृत्यु अटल है

मृत्यु का उपहास क्यों !


जन्मते ही बंध चुकी डोर मृत्यु से,

आती जाती सांस

मांगती रही कुछ डोर, मृत्यु से,

जीने की लालसा

कुछ पल और, कहती रही मृत्यु से;

भीख मांगते ही जीए

फिर मृत्यु पर

विजय का अट्टहास क्यों !


निशि वासर बीते

संचित करते सोना, चांदी, माणिक, मोती;

करते आए

जीवन भर सिक्कों की खेती,

कोए के कीड़े को

रेशम के धागों में लिपटे ही मर जाना है;

जान कर भी

मृत्यु से परिहास क्यों !

        


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract