कण कण में भारत
कण कण में भारत
माटी जीवनदात्री माँ और बहता पानी गंगाजल के रूप में पूजनीय जहाँ है,
हरि-द्वार है जहां पर, इन्द्रियों के नियंत्रक विष्णु भगवान विराजमान ऋषिकेश में जहाँ हैं,
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा व गिरजाघर संग में स्थित जिस धरती पे,
जो हिमालय से आच्छादित उत्तर में, हिन्द महासागर दक्षिण में जिसके,
गंगा-जमुना-सरस्वती-ब्राह्मपुत्र कल-कल करके बहतीँ जहाँ पे,
भारत की उस पावन कर्मभूमि को सलाम, विद्यमान कण-कण और कोशे -कोशे में राम और श्याम जिसके.
वेद पुराण जिसकी धरोहर, ऋषि-मुनियों ने पल -पल ज्ञान के दीप जलाये जहाँ,
वो सर्वोत्कृष्ट भूमि है भारत की, जिसके महान इतिहास का गुणगान करते थकता ना समस्त जहां.
जहाँ हर मौसम रंगीला, पीली सरसों से ढकी भूमि लगती मानो पीताम्बर,
कदम- कदम पर दिखते धरती के नए-नए रूप, बोलियों के विविध-विविध रंग,
नदी सुनहरी, हरा समुन्दर, सतरंगी रंगोली मोहित कर लेते जन जन का मन.
वन्दे मातरम, जन गण मन, जय हिन्द, जय जवान जय किसान के जयकारों से जयघोष होता जहां सुबह - शाम,
अनेकता में एकता की अद्वित्तीय मिसाल है जो, ऐसे महान भारतराष्ट्र को हम सबका ह्रदय से वंदन और सलाम.
आज प्रण लेते पूर्ण श्रद्धा से कि प्राण भले ही चले जाएँ पर तिरंगे की साख और शान को कायम सदा रखेंगे,
मर जाएंगे, मिट जाएंगे पर स्वतंत्रता के लिए अपने शहीदों की आहुति को व्यर्थ यूँ ही ना जाने देंगे.
शान्ति सर्वत्र कायम रखकर अखंडता को बरकरार रखने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग करेंगे,
उजड़े नहीं अपना वतन, बिखरे नहीं अपना चमन इसलिए सजग व सतत सदा हम रहेंगे.
हिन्द राष्ट्र ने दुनिया में परचम लहराया है, इस साख को बरकरार रखेंगे,
काँप जाए दुश्मन की रूह, सीना चौड़ा कर ऐसी प्रबल एक हुंकार भरेंगे.
माथे पर तिलक लगा शान से सुस्सजित करते हैं अपनी माटी को आज हम,
छप्पन इंच से भी चौड़े सीने हैं हमारे, भुजाओं में हमारी समाहित है असीमित दम.
हाथ रखेगा जो भारतमाता की प्रतिष्ठा पर, काट के टुकड़े-टुकड़े उसके कर देंगे,
कट जाएंगे, छट जाएंगे, टूट के सर्वत्र बिखर जाएंगे, पर शान भारत राष्ट्र की कभी ना मिटने देंगे।