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PRADYUMNA AROTHIYA

Tragedy Inspirational

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PRADYUMNA AROTHIYA

Tragedy Inspirational

कल्पना

कल्पना

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अंधकार में डूबी

चहार-दीवारी से 

वो निकलकर बाहर

आजाद दुनिया देखना चाहती है।


जो बाँध दी पैरों में

उसके जंजीरें

वो तोड़कर उन्हें

खुले आसमान में

नई परवाज लिये

नई दुनिया को देखना चाहती है।


अपने अहसास से 

वो दुनिया को 

नई पहिचान देना चाहती है।

गीतों में मधुरता का

वो राग सुरीला

छेड़ना चाहती है।


खाली पड़े पन्नों पर

अपने ही हाथों

अपनी जिंदगी की 

दास्तां लिखना चाहती है।


मासूम समझकर जिसको 

जमाने ने तमाशा ही समझा

वो अपने हुनर से 

तमाशाबीनों की दुनियां में

एक मिशाल बनना चाहती है।


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