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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Abstract

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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कितना भी तुम एकरार करो

कितना भी तुम एकरार करो

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कितना भी तुम एकरार करो 

किसका अब तुम इंतेजार करो 

अपने थे जो मिल ही तो गये 

गैरो को क्यूँ इतना प्यार करो !


बादल भी बरसते मर्जी से 

कायल भी होते खुदगर्जी से 

इन ऊँचे पहाड़ों की महिमा 

अब केवल तुम गुणगान करो !


धरती तो सबकी माँ जैसी 

पर धूल भरी हैँ आँचल मे 

गर मानव तन को समझ गये 

इस मां का तुम बखान करो ।


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