कितना भी तुम एकरार करो
कितना भी तुम एकरार करो
कितना भी तुम एकरार करो
किसका अब तुम इंतेजार करो
अपने थे जो मिल ही तो गये
गैरो को क्यूँ इतना प्यार करो !
बादल भी बरसते मर्जी से
कायल भी होते खुदगर्जी से
इन ऊँचे पहाड़ों की महिमा
अब केवल तुम गुणगान करो !
धरती तो सबकी माँ जैसी
पर धूल भरी हैँ आँचल मे
गर मानव तन को समझ गये
इस मां का तुम बखान करो ।