STORYMIRROR

निखिल कुमार अंजान

Romance

3  

निखिल कुमार अंजान

Romance

कितना अंतर है...

कितना अंतर है...

1 min
200


एक तुम हो जो कहती है प्यार है

एक मैं जिसके पास कितने सवाल है

अंदाज़ अलग है दोनो के फिर भी

तुम कहती हो हम एक जिस्म और जान है


तुम कहती हो विश्वास की डोर से बंधे है

हम दोनों का जन्मों जन्मों का साथ है

मैं अक्सर तुम्हारी बातें हँसी मे उड़ा देता हूँ

पर कहीं न कहीं अंदर एक एहसास है

बहुत शिद्दत से तुमने इश्क निभाया है


छोटे छोटे पलों से रिश्ते को बनाया है

मैं बेपरवाह हो इनसे किनारा करता हूँ

उल्टा सवाल तुमसे ही दोबारा करता हूँ

कितना अंतर है हम दोनों के इश्क में

मैं हमेशा कहता हूँ तुमसे कुछ तो पूछो

तुम कहती हो क्या पूछना है बताओ


फिर कहती हो

क्या सोचते हो ये बतलाओ

हौले से मुस्कुरा बिना कुछ लफ्जों से कहे 

बोलती हो थोड़ा सा तो विश्वास दिखलाओ

मैं पूछता हूँ कितना प्यार करती हो मुझसे

तुम कहती हो पता नहीं पर प्यार करती हूँ


मैं फिर पूछता हूँ क्या कर सकती हो मेरे लिए

तुम कहती हो कुछ भी पर बता नहीं सकती

मैं चुप हो जाता हूँ तुम मुस्कुराती हो

तुम कहती हो इश्क मेरा है न क्यों घबराते हो

तुम्हें नहीं है तो फिर क्यों जताते हो


साथ हो यही काफी है अब नहीं कोई चाहत बाकी है

मेरा अब खुद से ही सवाल है प्यार है या नहीं मुझे

या सिर्फ ये अंजान समझता तुझे अपना गुलाम है

कितना अंतर है तुझमे और मुझमे....



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance