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PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Classics Children

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PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract Classics Children

किस्से रह जाते हैं प्रद्युम्न अरोठिया

किस्से रह जाते हैं प्रद्युम्न अरोठिया

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आगे बढ़ने से कदमों के

कुछ चिन्ह पीछे रह जाते हैं।

यादों के गहरे 

बहुत गहरे 

किस्से रह जाते हैं।।


यकीनन फिर नहीं मिलेंगे

फिर भी अहसास के

बंधन रह जाते हैं।

प्यार से सजोए

प्यार के 

किस्से रह जाते हैं।।


वक़्त की दौड़ में

जिंदगी के हसीन 

किस्से रह जाते हैं।

जो मिल जाये वक़्त से

वही काफी है

वरना पूर्णता की चाह में

अधूरे किस्से रह जाते हैं।।


उम्र के बढ़ते शोर में

माँ के स्नेह की छाँव के

किस्से रह जाते हैं।

संघर्षमय पिता के

बुनियादी जज्बातों के

किस्से रह जाते हैं।।


दोस्तों की गलियों में

शोर मचाने के

अधूरे किस्से रह जाते हैं।

जीने ढंग निराले

निराले किस्से रह जाते हैं।।


भावनाओं के किनारे

लगे रह जाने से

यादों के किस्से रह जाते हैं।

बहाब कम रह जाने से

उनके उम्र भर साथ रहने के

किस्से रह जाते हैं।।


चलते रहना ही जिंदगी है

फिर अतीत के 

किस्से रह जाते हैं।

जिससे खुशी मिले 

जीने की

वही बीते वक़्त से 

तालीम के

किस्से रह जाते हैं।।


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