किसी रोज
किसी रोज
किसी दिन दबे पाँव मैं चली जाऊँ,
तुम मुझे तब याद तो करोगे न ?
ढूंढोगे क्या कभी मुझे आईने में
अपने पीछे मुड़कर हँसते हुए ?
कभी मोबाइल पर व्हाट्सअप-फेसबुक के
मैसेज बॉक्स में भेजोगे मुझे कोई संदेश ?
ये जानते हुए भी कि मैं नहीं पढूँगी
तुम्हारे उस संदेश को कभी।
कहीं दूर से खिलखिलाती आवाजें सुनकर
कभी वहम करोगे मेरे होने का ?
कभी पास से गुजर गई जैसे
हवा के बहाने मेरी याद तुम्हें छू कर।
सोच कर ऐसा भी दो पल
उदास हो जाओगे क्या ?
चली आऊँ मैं लौटकर फिर पास तुम्हारे
मुझे मनाने कभी चॉकलेट-गुलाब
ले आओगे क्या ?
कभी यूँ ही देखकर तस्वीर मेरी
अपने दिल से लगा कर-
मुझे पुकार लोगे क्या ?
नहीं ! शायद नहीं,
क्योंकि और भी काम
जरूरी है तुम्हारी ज़िन्दगी में
मेरे सिवा।
और जाने के बाद याद करो भी
गर मुझे तुम बेकल होकर
तो धुंध ही रहेगी तुम्हारी आँखों मे
उससे मुझे फर्क पड़ेगा भी तो क्या ?