किसान
किसान
किसान बनना आसान नहीं है,
गांव की माटी वो न छोड़ पाता,
पता है क्यों ?
मुठ्ठी भर अनाज सबको मिल जाये
अपने हिस्से का उपजाने के लिए,
किसी के घर का चूल्हा बुझने ना पाए,
धरती मां की गोद में फसल लहलहाता है।
वो मौसम की हर मार झेलकर भी मुस्कुराता है,
क्योंकि शिकायत करने का, उसको
से वक्त ही नहीं मिलता।
वो भूल जाता है अपनी परेशानियां,
वो पालने में लगा रहता है,
रोपने में उन नन्हे बीजों को, बढ़ते पौधों को,
ना देखी,उसने कड़क गर्मी, ना धूप, न सर्दी,
पांव की फटी एड़ियों से सरपट दौड़ा चला आता है।
बच्चों की तरह फसल पालकर बड़ा करता है,
और जब सूखा, पाला या बाढ़ की मार पड़ती है,
तब भी उसे पूरे देश की चिंता होती है,
लाख त्रासदी झेलकर भी वो मेहनतकश इंसान,
खेती करना नहीं छोड़ता,
अपने हर हिस्से की थाली में से,
दुसरे के हिस्से के दाल चावल, और रोटी सब्जी,
निकालकर रखता है, मैले कपड़ो की, फैशन की
उसे चिंता नही होती, कोई क्या कहेगा,
उसे फिक्र होती है पैदा होते नन्हें पौधों की,
मिट्टी में सनकर माटी प्रेमी को तृप्ति होती,
यही उसका सौभाग्य है,
ऐसा मानकर अन्नदाता,
कभी शहरों की तरफ नहीं भागता।
ऊंचे महलों ऊंची मीनारों के,
सपने नही देखता, लेकिन वो सपने,
देखना नही बंद करता,
नई पीढ़ी को पढ़ाता है।
बाहर नई टेक्नोलॉजी सीखने,
डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक बनने,
बंद नहीं करता वो आवोहवा,
खुले रखता है अपने दरवाजे,
गांव के रास्ते,खुली ताज़ी हवा,
माटी की भीनी खुशबू,
के साथ नई पीढ़ी को आमंत्रित करता है,
अन्नदाता बनने के लिए।