किसान
किसान
पेट भरता है जो संपूर्ण देश का खुद भूखा ही सो जाता है,
अभावों में जीवन जीता है वही जो अन्न दाता कहलाता है,
फसल उगाने की खातिर पूरे वर्ष करता है जी तोड़ मेहनत,
अनाज की पूर्ति हेतु स्वयं को भुलाकर वो फसल उगाता है,
इतनी मेहनत करने पर भी फल कहाँ मिले हैं उसे भरपूर,
कर्ज तले दब जाती ज़िन्दगी, जीवन से होता पल-पल दूर,
टूटकर बिखरकर रह जाता वो जब फसल ना अच्छी होती,
मदद को कोई हाथ ना आगे आए ज़िंदगी बन जाती नासूर,
बरसात में टपकती रहती है छत उसके कच्चे मकानों की,
फसल हो जाती बर्बाद बलि चढ़ जाती उसके अरमानों की,
फिर भी बादल बरसाए जल यही आस सदा रहती दिल में,
कैसे सुखी हो वहाँ किसान, जहाँ कतार लगी बेईमानों की,
टूटा फूटा घर उसका किसी तरह खाता है दो वक्त की रोटी,
अन्नदाता के ही बच्चे सोते भूखे, किस्मत भी कितनी खोटी,
न जाने किस गुनाह की मिले सजा घर भी गिरवी रह जाता,
देश कर रहा तरक्की पर किसानों की हालत कहाँ सुधरती,
कितनी भी हो फसल अच्छी पर दाम कहाँ इन्हें मिल पाता,
कालाबाजारी कर भ्रष्टाचारी, है इनका पूरा फायदा उठाता,
नफ़ा नुकसान की बात ही छोड़ो लागत भी कहाँ मिल पाए,
इसलिए अन्नदाता हो के भी किसान, गरीबी की मार झेलता,
हर साल बिक जाते हैं कितने क्रिकेट खिलाड़ी करोड़ों में,
पर मेहनत का हक नहीं पाता किसान अश्क इनके नेत्रों में,
काश! किसानों के लिए भी आईपीएल का आयोजन होता,
तो अपना हक मांगने आज किसान नहीं उतरते सड़कों में।